UP Education, Lucknow : उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों के विलय को लेकर बड़ा फैसला लिया है। राज्य के बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री संदीप सिंह ने स्पष्ट किया है कि अब एक किलोमीटर से ज्यादा दूरी वाले स्कूलों का विलय नहीं किया जाएगा। साथ ही, जिन स्कूलों में 50 से अधिक छात्र नामांकित हैं, वे भी इस प्रक्रिया से बाहर रहेंगे।
यह निर्णय उन जिलों में हो रहे विरोध और शिकायतों को ध्यान में रखकर लिया गया है, जहां अभिभावकों और शिक्षक संगठनों ने स्कूलों के विलय पर नाराजगी जताई थी। खासतौर पर दूरस्थ इलाकों में बच्चों को नए विलय किए गए स्कूल तक पहुंचने में हो रही परेशानी की कई शिकायतें सामने आई थीं।
मंत्री संदीप सिंह ने लोक भवन में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा:
“सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले और उसके लिए जरूरी मूलभूत सुविधाएं उसके नजदीकी स्कूल में मौजूद हों। स्कूलों की स्थिति में 2017 के बाद व्यापक सुधार किए गए हैं। आज प्रदेश के 96% स्कूलों में बच्चों के लिए पेयजल, शौचालय और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं।”
पहले अन्य राज्यों में भी हो चुकी है स्कूलों की पेयरिंग
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश पहला राज्य नहीं है, जहां स्कूलों की पेयरिंग (विलय) की नीति अपनाई जा रही है। इससे पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में यह प्रक्रिया सफलतापूर्वक लागू की जा चुकी है।
राजस्थान में 2014 में लगभग 20,000 स्कूलों का विलय किया गया।
मध्य प्रदेश में 2018 में पहले चरण में 36,000 स्कूलों का समेकन हुआ और लगभग 16,000 समेकित परिसर बनाए गए।
उड़ीसा में 2018-19 में 1,800 स्कूलों का विलय किया गया।
हिमाचल प्रदेश में 2022 व 2024 में यह प्रक्रिया चरणबद्ध रूप से पूर्ण की गई।
69,000 शिक्षक भर्ती पर कोर्ट के फैसले का करेंगे पालन
शिक्षा मंत्री ने 69,000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे विवाद पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा:
“सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह पालन करेगी। न्यायालय की प्रक्रिया में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती। पहले शिक्षकों की जगह अन्य लोग पढ़ाते थे, लेकिन अब हर शिक्षक स्वयं विद्यालय में पढ़ा रहा है।”
राज्य सरकार का यह कदम छात्रों की सहूलियत और शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने की दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक फैसला माना जा रहा है। इससे ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में पढ़ रहे विद्यार्थियों को बड़ी राहत मिलेगी और उन्हें अपने ही गांव या नजदीकी क्षेत्र में पढ़ाई का अवसर मिलता रहेगा।