MAHUAR-Nag Panchami 2025 : नाग पंचमी के अवसर पर जब पूरे देश में नाग देवता की विधिवत पूजा होती है, वहीं काशी की गलियों और घाटों में एक अनोखी और रहस्यमयी परंपरा ‘महुअर’ का जीवंत प्रदर्शन होता है। यह कोई आम खेल नहीं, बल्कि अदृश्य तंत्र-मंत्रों की भिड़ंत है, जो केवल सिद्ध तांत्रिक सपेरे ही खेल सकते हैं।
प्राचीन उत्तर भारतीय और बिहारी तांत्रिक परंपरा की यह मिसाल हर साल नाग पंचमी पर प्रह्लाद घाट, कोनिया, काल भैरव मंदिर चौराहा, राम घाट, लक्सा और सनातन धर्म इंटर कॉलेज के आसपास देखने को मिलती है।
क्या है ‘महुअर’ ?
महुअर एक मानसिक और तांत्रिक युद्ध है, जिसमें दो या अधिक सपेरे एक-दूसरे पर मंत्रों के जरिए अदृश्य प्रभाव डालते हैं। आम दर्शक को यह खेल शांत और सामान्य दिखता है, लेकिन इसकी गहराई में चलता है एक मौन युद्ध, जिसमें तांत्रिक शक्तियों की परीक्षा होती है। यह कोई मंचन नहीं, बल्कि साधना का संघर्ष है।
सपेरों की तांत्रिक टक्कर
कानपुर देहात के ढाकन सीवली गांव निवासी विनोद बाबा, जो दत्त संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं, बताते हैं कि महुअर में सपेरे एक-दूसरे को मंत्रों से जानवरों जैसे व्यवहार करने को मजबूर कर सकते हैं,जैसे किसी को घोड़ा, कुत्ता, बिच्छू बना देना। कभी-कभी इतना गहरा असर होता है कि सामने वाला मधुमक्खी काटने वाले मंत्र के प्रभाव में आकर बेकाबू हो जाता है।
बिना आयोजक, बिना शोर—सिर्फ साधना
यह खेल किसी आयोजक या मंचन के लिए नहीं होता। यह सपेरों के बीच साधना और सिद्धि की प्रतिस्पर्धा है, जो पीढ़ियों से गुरु-शिष्य परंपरा के ज़रिए चली आ रही है। इसमें कोई इनाम नहीं होता, लेकिन हार-जीत साधना की गहराई को दर्शाती है।
परंपरा के सामने खतरा
विनोद बाबा बताते हैं कि यह परंपरा अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। युवाओं में तंत्र-मंत्र की समझ और रूचि कम हो रही है। वह खुद बीते 25 वर्षों से इस खेल का हिस्सा रहे हैं और मानते हैं कि यह काशी की उन विरासतों में से है जो आज भी घाटों और गलियों में जीवित हैं, बस इन्हें देखने और समझने वाली नजर चाहिए।
नाग पंचमी पर जब पूरा देश श्रद्धा में डूबा होता है, काशी की तांत्रिक परंपरा ‘महुअर’ एक बार फिर रहस्य और रोमांच के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है।