KANWAR ROUTE QR CODE : उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सावन के दौरान KANWAR ROUTE स्थित ढाबों, भोजनालयों और अस्थायी स्टॉल्स पर क्यूआर कोड लगाने और उनके मालिकों की धार्मिक व जातीय पहचान उजागर करने की अनिवार्यता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। यह मामला अब न केवल कानूनी बहस का विषय बन गया है, बल्कि देशभर में धार्मिक स्वतंत्रता, निजता और समानता जैसे संवैधानिक मूल्यों पर भी व्यापक चर्चा शुरू हो गई है।
क्या है मामला ?
यूपी सरकार के निर्देश के मुताबिक KANWAR ROUTE पर संचालित सभी खाद्य प्रतिष्ठानों को एक विशेष क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य किया गया है, जिसमें मालिक की धार्मिक और जातीय पहचान की जानकारी शामिल होगी। राज्य सरकार का तर्क है कि इस कदम से श्रद्धालुओं की सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी, जिससे यात्रियों को उचित जानकारी मिल सके और किसी भी प्रकार की अफवाह या विवाद से बचा जा सके।
याचिकाकर्ता के तर्क
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि यह निर्देश न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त “निजता के अधिकार” का उल्लंघन करता है, बल्कि यह धार्मिक पहचान के आधार पर भेदभाव को भी बढ़ावा देता है। याचिकाकर्ता ने आशंका जताई है कि इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है और व्यापारियों को उनकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया जा सकता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि यह कदम भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के खिलाफ है और राज्य द्वारा धार्मिक आधार पर नागरिकों के बीच विभाजन करने का प्रयास प्रतीत होता है।
संभावित प्रभाव
धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात: यह सवाल उठा है कि क्या राज्य सरकार किसी नागरिक को उसकी धार्मिक या जातीय पहचान सार्वजनिक करने के लिए बाध्य कर सकती है?
व्यापारियों में चिंता: KANWAR ROUTE पर अस्थायी रूप से दुकान लगाने वाले कई छोटे व्यापारी डरे हुए हैं कि इस प्रकार की पहचान सार्वजनिक करने से उन्हें बहिष्कार या हिंसा का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीतिक बहस तेज: विपक्षी दलों ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास बताया है, जबकि सरकार इसे यात्रियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम कह रही है।
आगे की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट अब इस याचिका पर सुनवाई करेगा और यह तय करेगा कि क्या राज्य सरकार का यह निर्देश संविधान के अनुरूप और “जनहित” में है, या यह निजता, समानता और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
इस मामले की सुनवाई आने वाले दिनों में सामाजिक न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकारी नियंत्रण जैसे व्यापक मुद्दों पर देशव्यापी विमर्श को जन्म दे सकती है। अदालत का फैसला संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 की नई व्याख्याओं की ओर इशारा कर सकता है।