GANGA FLOOD , VARANASI : उत्तर भारत में लगातार हो रही भारी बारिश ने GANGA नदी को उफान पर ला दिया है, जिसके कारण काशी के 84 ऐतिहासिक घाट पूरी तरह जलमग्न हो चुके हैं। इस भीषण बाढ़ के कारण धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हो गई हैं। मणिकर्णिका घाट, जिसे महाश्मशान कहा जाता है, अब पानी में डूब चुका है और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अब घाट की छतों पर की जा रही है।
चेतावनी बिंदु के करीब पहुंचा गंगा का जलस्तर
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, 16 जुलाई की सुबह 8 बजे GANGA का जलस्तर 68.92 मीटर दर्ज किया गया, जो चेतावनी बिंदु 70.26 मीटर से सिर्फ 1.34 मीटर नीचे है। हर घंटे जलस्तर में 1 से 4 सेंटीमीटर की वृद्धि दर्ज की जा रही है, जिससे हालात और गंभीर होते जा रहे हैं। प्रशासन ने बाढ़ की चेतावनी जारी कर दी है और छोटी नावों के संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह में बाधा
काशी के मणिकर्णिका घाट पर जहां 24 घंटे चिताएं जलती थीं, अब पानी भर जाने के कारण शवदाह के लिए छतों का सहारा लिया जा रहा है। घाट के पांच में से तीन प्लेटफॉर्म जलमग्न हो चुके हैं। डोम समुदाय के लोग गलियों और छतों पर अंतिम संस्कार की व्यवस्था कर रहे हैं।
हरिश्चंद्र घाट पर भी स्थिति भयावह है। यहां अब एक साथ 40 की जगह केवल 12-14 शवों का ही अंतिम संस्कार हो पा रहा है। लकड़ी की आपूर्ति बाधित है क्योंकि घाटों तक पहुंचने वाले मार्ग भी जलमग्न हैं।
जनजीवन पर गहरा असर, नाविक और दुकानदार परेशान
दशाश्वमेध घाट पर फूल-मालाओं की दुकान चलाने वाली सरोज बताती हैं कि बाढ़ ने उनकी रोजी-रोटी छीन ली है। “एक महीने तक काम बंद रहेगा। कमाई नहीं होगी तो परिवार कैसे चलेगा?” नाविक रमेश का भी यही दर्द है, “पानी इतना बढ़ गया है कि नावें चल ही नहीं सकतीं। कम से कम तीन महीने तक कोई आमदनी नहीं होगी।”
प्रशासन सक्रिय, राहत शिविरों में शुरू हुआ काम
जिला प्रशासन ने अब तक 46 राहत शिविर बनाए हैं, जिनमें से 16 सक्रिय हैं। एनडीआरएफ की टीमें तटीय इलाकों में राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं। GANGA आरती अब केवल सांकेतिक रूप से की जा रही है क्योंकि आरती स्थल जलमग्न है। नमो घाट का प्रसिद्ध ‘नमस्ते’ स्कल्पचर तक पानी पहुंच गया है।
मोहल्लों में घुसा पानी, भय का माहौल
स्थानीय मोहल्लों और गलियों में GANGA का पानी घुस चुका है, जिससे लोगों में डर का माहौल है। स्कूल बंद हो चुके हैं, आवागमन ठप हो गया है और कई इलाकों में पीने के पानी की भी समस्या खड़ी हो गई है। प्रशासन लगातार लोगों से सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील कर रहा है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
जल विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर जल प्रबंधन और बैराजों से समुचित जल निकासी की व्यवस्था होती तो हालात इतने खराब नहीं होते। यह बाढ़ न केवल काशी की आस्था को चुनौती दे रही है, बल्कि हजारों लोगों की आजीविका और सांस्कृतिक विरासत को भी खतरे में डाल रही है।
काशी की पवित्र भूमि इस समय संकट के गंभीर दौर से गुजर रही है। गंगा की यह विकराल स्थिति प्रशासन, आमजन और पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि जल प्रबंधन और आपदा पूर्व तैयारी को और मजबूत करने की आवश्यकता है। काशीवासियों की पीड़ा आज पूरे देश की चिंता बननी चाहिए।