“Even the dead have become voters in Bihar.” बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाए हैं। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि SIR के तहत फर्जीवाड़ा हुआ है,मृत व्यक्तियों के नाम पर फॉर्म भरे गए, बीएलओ द्वारा खुद ही फॉर्म पर हस्ताक्षर किए गए, और दस्तावेजों के बिना ही फॉर्म स्वीकार किए गए।
“मरे हुए लोग भी भर रहे हैं फॉर्म” — याचिकाकर्ता
ADR और RJD ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि चुनाव आयोग द्वारा दिए गए आंकड़े अविश्वसनीय हैं क्योंकि **अधिकांश फॉर्म बिना जरूरी दस्तावेजों के जमा किए गए। उन्होंने कहा कि बीएलओ (BLO) स्वयं फॉर्म भरकर अपलोड कर रहे हैं, जिससे मतदाता सूची की शुद्धता पर सवाल उठता है।
फर्जी हस्ताक्षर और बिना मुलाकात के ऑनलाइन फॉर्म
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि कई मतदाताओं ने बताया कि उन्होंने कभी किसी बीएलओ से मुलाकात नहीं की, फिर भी उनके नाम से ऑनलाइन फॉर्म जमा हो गए। मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि बीएलओ ने जाली हस्ताक्षर कर फॉर्म अपलोड किए और कई बार वे संबंधित इलाकों में गए ही नहीं।
चुनाव आयोग ने दी सफाई
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि SIR प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और नियमानुसार है। आयोग का दावा है कि यह कवायद अयोग्य या मृत मतदाताओं को सूची से हटाने और मतदाता सूची को साफ करने के लिए की जा रही है।
28 जुलाई को होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सोमवार, 28 जुलाई 2025 को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ पहले ही यह कह चुकी है कि मतदाता पुनरीक्षण के दौरान आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज मान्य माने जा सकते हैं।
यह मामला बिहार में आगामी चुनावों के पहले मतदाता सूची की शुचिता और पारदर्शिता को लेकर अहम बन गया है। अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और इसके संभावित फैसले पर टिकी हैं, जो भविष्य की चुनावी प्रक्रिया पर बड़ा असर डाल सकता है।