CHATURMAS : आज से चातुर्मास की पावन शुरुआत हो रही है, जो देवशयनी एकादशी (6 जुलाई) से लेकर देवउठनी एकादशी (31 अक्टूबर) तक चलेगा। हिंदू धर्म में इस चार महीने की अवधि को अत्यंत पवित्र और तप, साधना, नियमों के पालन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
धार्मिक महत्व:
स्कंद पुराण के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में लीन रहते हैं। इस दौरान विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों पर रोक रहती है। शास्त्रों में कहा गया है कि यह काल तपस्या और आत्मचिंतन के लिए आरक्षित है।
संतों का है मानना :
चातुर्मास के दौरान साधु-संत यात्रा नहीं करते और एक ही स्थान पर रहकर सत्संग, प्रवचन, ध्यान और भक्ति में लीन रहते हैं। यह समय आत्मानुशासन और आत्मविकास का होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण :
चातुर्मास की अवधि वर्षा और ऋतु परिवर्तन का समय होता है। इस दौरान वातावरण में बैक्टीरिया और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अधिक भोजन, यात्रा और सामाजिक संपर्क से स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। इसलिए संयम, उपवास और आराम को प्राथमिकता दी जाती है।
सामाजिक और पारिवारिक महत्व :
यह काल समाज में एकता, संयम और सेवा की भावना जगाता है। धार्मिक अनुष्ठानों, दान और पर्यावरण-संरक्षण से समाजिक संतुलन बनता है। उत्सवों और व्रतों के माध्यम से परिवार एकत्रित होता है, जिससे पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं।
चातुर्मास न केवल एक धार्मिक अवधारणा है, बल्कि यह जीवन को अनुशासन, पवित्रता और संतुलन की ओर ले जाने वाला एक मार्ग भी है। यह समय आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ सामाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा करने का सुनहरा अवसर है।