Kushmanda Mata Pooja 2025 : वाराणसी में माँ कुष्मांडा के दर्शन का विशेष महत्व
Kushmanda Mata Pooja 2025 : शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माँ कुष्मांडा की आराधना का विधान है। वाराणसी स्थित दुर्गाकुंड मंदिर में इस अवसर पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। रात्री से ही माँ के दर्शन हेतु लंबी कतारें लग गईं। माँ कुष्मांडा को नारियल चढ़ाने का विशेष महत्व है, इसलिए भक्त नारियल, चुनरी, लाल अधुल की माला और मिष्ठान का भोग लगाकर देवी से मनोकामना पूरी करने का आशीर्वाद मांगते हैं।
माँ कुष्मांडा की मान्यता और कथा
धार्मिक मान्यता है कि जिनके उदर में समस्त संसार स्थित है वही माँ कुष्मांडा कहलाती हैं। जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, उस समय सैकड़ों सूर्य के तेज से प्रदीप्त माँ कुष्मांडा प्रकट हुईं। उनकी मुस्कुराहट से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। इसीलिए उन्हें सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है।
संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड का अर्थ कुम्हड़ा (Pumpkin) होता है। मान्यता है कि कूष्माण्ड की बलि इन्हें अति प्रिय है। इसी कारण इन्हें माँ कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है।
माँ कुष्मांडा और सूर्य मंडल का संबंध
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि माँ कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के मध्य में है और वह अपने दिव्य प्रभाव से सूर्य मंडल को नियंत्रित रखती हैं। इसी वजह से भक्त इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव की कृपा भी माँगते हैं।
अनाहत चक्र और साधना
नवरात्रि के चौथे दिन साधक का मन ‘अनाहत चक्र’ में स्थित माना जाता है। इस दिन भक्तों को चाहिए कि वे पूर्ण पवित्रता और शांत मन से माँ कुष्मांडा की पूजा करें और उनका ध्यान करें। माना जाता है कि इससे साधक के जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि 2025 में माँ कुष्मांडा की आराधना करने से समस्त कष्टों का निवारण होता है और भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।